कानपुर,
आधुनिक समय में अव्यवस्थित दिनचर्या और तनाव के कारण हार्ट अटैक के मामलों में बहुत तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। साइलेंट हार्ट अटैक का एक प्रमुख लक्षण पेट के ऊपरी हिस्से में जलन और भारीपन भी होता है। ज्यादातर लोग इन लक्षणों को गैस की समस्या मानकर चुपचाप बैठे रहते हैं या फिर घरेलू नुस्खे आजमाते रहते हैं जिससे कि समय रहते चिकित्सीय परामर्श नहीं लेते हैं।
आइये जाने डा.अवधेश शर्मा वर्तमान में हृदय रोग संस्थान , कानपुर में प्रोफेसर कार्डियोलॉजी के पद पर कार्यरत हैं। जिन्होंने बताया है कि गैस के दर्द और हार्ट अटैक में अन्तर कैसे करें।
1-गैस का दर्द मुख्यतः–
कुछ मिर्च-मसाले वाला भोजन करने के बाद होता है या फिर काफी समय तक खाली पेट रहने पर होता है।गैस की दिक़्क़त लेटने पर और भी बढ़ जाती है व गले में जलन और खट्टी डकार भी महसूस हो सकती है। ठण्डा दूध अथवा गैस की दवा लेने पर इसमें आराम मिल जाता है।जबकि हार्ट अटैक की वजह से होने वाली दिक्कत का मुख्यतः खाने से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता है एवम् यह किसी भी समय हो सकती है।इसमें दर्द की अपेक्षा पेट के ऊपरी हिस्से में भारीपन,घुटन और अजीब सी बेचैनी महसूस होती है जो कि कोई भी कार्य करने पर बढ़ जाती है।लेटने या आराम करने से हार्ट अटैक में राहत महसूस होती है।
2-गैस का दर्द किसी भी उम्र में हो सकता है जबकि हार्ट अटैक से होने वाली दिक्कत मुख्य रूप से 40 वर्ष की अवस्था के बाद ही होती है।
3-गैस के दर्द के साथ खट्टी डकार,गले में जलन व लैट्रीन की समस्या हो सकती है।जबकि अगर पेट में दिक्कत के साथ उलझन,घबराहट,बेचैनी,पसीना महसूस हो तो यह हार्ट अटैक की तरफ इशारा करता है।
4-गैस की वजह से होने वाली दिक्कत सामान्यतः एक से दो घण्टे में ठीक हो जाती है जबकि हार्ट अटैक का दर्द समय के साथ -साथ बढ़ता है और स्थिति धीरे-धीरे खराब होती चली जाती है।
5-सॉर्बिट्रेट की गोली ज़बान के नीचे रखकर चूसने से हार्ट अटैक के दर्द में आराम मिलता है जबकि गैस के दर्द में आराम मिलने की संभावनायें ना के बराबर होती हैं।
6-अगर व्यक्ति को अनियन्त्रित हाई ब्लड प्रेशर,शुगर,मोटापे आदि की समस्या है या फिर वह धूम्रपान करता है तो हार्ट अटैक की सम्भावना अधिक होती है।
उपरोक्त बिन्दुओं से काफी हद तक हार्ट अटैक के दर्द और गैस के दर्द में अन्तर किया जा सकता है फिर भी अगर किसी व्यक्ति को इस तरह के लक्षण होते हैं और अगर आराम नहीं मिलता है। तो बेहतर यही रहता है कि हृदय रोग विशेषज्ञ से मिलकर उचित परामर्श कर लें।