IIT कानपुर के शोध ने बाइनरी फ्लूइड डायनेमिक्स के रहस्यों को किया उजागर

कानपुर,
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (आईआईटी-के) के शोधकर्ताओं ने नेचर ग्रुप द्वारा ‘कम्युनिकेशंस फिजिक्स’ पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन में रिलैक्सेशन ऑफ टर्बूलेंट बाइनरी फ्लूडस् की प्रक्रिया में नई अंतर्दृष्टि का खुलासा किया है। बाइनरी फ्लूडस् पर यह महत्वपूर्ण शोध, तेल और पानी जैसे मिश्रण का जिक्र करते हुए, टर्बूलेंट रिलैक्सेशन के मौजूदा सिद्धांतों को चुनौती देता है और विज्ञान, इंजीनियरिंग और विभिन्न उद्योगों में बाइनरी फ्लूड डायनेमिक्स के व्यावहारिक अनुप्रयोग में नए रास्ते खोलता है।
जोरदार स्टरिंग स्थिति पर, एक द्विआधारी द्रव रिलैक्स हो जाता है और कोशिका जैसी संरचनाओं के साथ एक मध्यवर्ती चरण बनाता है। ये अध्ययन आईआईटी कानपुर के भौतिकी विभाग के रिसर्च स्कॉलर नंदिता पान और अरिजीत हलदर के साथ *प्रोफेसर सुप्रतीक बनर्जी* के नेतृत्व में हुआ है l आईआईटी कानपुर टीम की इस खोज का औद्योगिक अनुप्रयोगों में ऐसे तरल पदार्थों के गुणों को समझने और उनमें बदलाव करने के लिए गहरा प्रभाव है, जो कि विस्तृत प्रक्रिया की पड़ताल करता है कि स्टरिंग खत्म करने पर बाइनरी फ्लूडस् कैसे रिलैक्स हो जाता है।
विशेष रूप से, शोध इस बात का मात्रात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है कि कैसे प्रत्येक घटक द्रव का बड़ा हिस्सा और बाइनरी मिश्रण में उनका इंटरफ़ेस टर्बूलेंट समाप्त होने के बाद एक चरण-पृथक स्थिति में वापस आ जाता है। दिलचस्प बात यह है कि बल्क की रिलैक्स स्थिति इंटरफ़ेस क्षेत्र की तुलना में स्पष्ट रूप से भिन्न होती है। हालाँकि, दोनों एक सार्वभौमिक मार्ग के माध्यम से आराम करते हैं,अर्थात् गायब होने वाले गैर-रेखीय स्थानांतरण (पीवीएनएलटी) का सिद्धांत जो हाल ही में एक ही लेखक द्वारा प्रस्तावित किया गया है (बनर्जी, हलदर और पैन, पीआरई लेटर्स, 107, एल043201, 2023)। इसके अलावा, अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार, बाइनरी फ्लूडस् में यह रिलैक्स प्रक्रिया, एकल-तरल प्रणालियों से काफी भिन्न होती है। इस अंतर को ‘स्केलर एनर्जी’ नामक एक अतिरिक्त मात्रा के संरक्षण के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो इस रिलैक्स प्रक्रिया को समझने में महत्वपूर्ण है।
आईआईटी कानपुर में भौतिकी विभाग के प्रोफेसर सुप्रतिक बनर्जी ने कहा कि “हमारे शोध के निष्कर्षों में खाद्य प्रसंस्करण,फार्मास्यूटिकल्स और सौंदर्य प्रसाधन जैसे उद्योगों में अनुप्रयोगों की अपार संभावनाएं हैं, जहां मेयोनेज़, एंटासिड इमल्शन, शैंपू और बॉडी क्रीम जैसे बाइनरी इमल्शन निर्मित किये जाते हैं। शोध के निष्कर्ष विनिर्माण और संरक्षण प्रक्रियाओं में आवश्यक अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। इससे उत्पादन के तरीके अधिक कुशल हो सकते हैं, अपशिष्ट और लागत कम हो सकती है। बाइनरी फ्लूडस् के अद्वितीय रिलैक्स गुणों को समझकर, कंपनियां अपने उत्पादों की स्थिरता को अनुकूलित कर सकती हैं, जिससे लंबी शेल्फ लाइफ और बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित हो सकती है।
उन्होंने आगे कहा, “इसके अतिरिक्त, फार्मास्यूटिकल्स में, जहां कुछ दवाओं की प्रभावकारिता के लिए इमल्शन की स्थिरता महत्वपूर्ण है, इस शोध से दवा निर्माण में वृद्धि हो सकती है, जिससे अंततः रोगी के उपचार में सुधार हो सकता है।”
शोध का एक उल्लेखनीय पहलू यह है कि यह चयनात्मक क्षय के व्यापक रूप से स्वीकृत सिद्धांत को चुनौती देता है, एक ऐसा सिद्धांत जो लंबे समय से टर्बूलेंट रिलैक्स की समझ पर हावी है, लेकिन बाइनरी फ्लूडस् की शिथिल अवस्था में परिमित दबाव प्रवणता को ध्यान में रखने में विफल रहता है। औद्योगिक सेटिंग्स में इन निष्कर्षों का अनुप्रयोग न केवल उत्पाद की गुणवत्ता और स्थिरता को बढ़ाएगा, बल्कि फॉर्मूलेशन और प्रसंस्करण तकनीकों में नवाचार को भी बढ़ावा देगा, जिससे संभावित रूप से नए उत्पादों और अनुप्रयोगों के विकास को बढ़ावा मिलेगा।

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