नई दवाओं व बीटा ब्लॉकर्स के उपयोग से मृत्यु दर में आई है कमी- डॉ.अवधेश शर्मा

आगरा,
कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया उत्तर प्रदेश चैप्टर के आगरा में आयोजित वार्षिक अधिवेशन कार्डिकॉन-2024 में डॉ. अवधेश शर्मा ने विशेषज्ञ वक्ता के तौर पर हार्ट फेल्यर पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
डॉ. अवधेश शर्मा ने कहा कि हार्ट फेल्यर की समस्या आधुनिक समय में काफी तेजी से बढ़ रही है। हार्ट अटैक के विकसित उपचार की तकनीकों के माध्यम से रोगी की जान तो बच जाती है पर हार्ट अटैक की वजह से हृदय की मांसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं। जिससे कि हार्ट की पम्पिंग क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सामान्यतः हमारे हार्ट की पम्पिंग क्षमता पचपन प्रतिशत से अधिक होनी चाहिये। सामान्य भाषा में अगर हम कहें तो जितना रक्त हार्ट में आ रहा है। उसका 55 प्रतिशत से अधिक प्रत्येक संकुचन में शरीर में प्रवाहित हो जाना चाहिये।

हार्ट फेल्यर में यही पम्पिंग क्षमता कम हो जाती है जिस कारण शरीर के प्रत्येक अंग में रक्त का प्रवाह एक समुचित दाब पर नहीं हो पाता है और मरीज को साँस फूलने ,थकान आदि के लक्षण होने लगते हैं।अगर हार्ट फेल्यर का उपचार ठीक तरह से नहीं किया जाये तो लगभग पचास प्रतिशत रोगी आने वाले पाँच सालों में खत्म हो जाते हैं। नई दवाओं जैसे कि आरनी(ARNI), MRA,SGLT2 inhibitors एवं बीटा ब्लॉकर्स के उपयोग से लगभग 30-40 प्रतिशत मृत्यु दर में कटौती देखी गयी है।


एडवांस उपचार के तौर पर आखिरी विकल्प हृदय प्रत्यारोपण है। इसके अतिरिक्त कॉम्बो डिवाइस व आर्टिफीसियल हार्ट के माध्यम से भी काफ़ी हद तक आराम मिलता है। अगर किसी व्यक्ति को साँस फूलने की व आत्याधिक थकान की शिकायत हो तो उसे अपना इको टेस्ट करवाकर हार्ट की पंपिंग क्षमता अवश्य पता करना चाहिये व दिक़्क़त होने पर अपने चिकित्सक से तुरन्त परामर्श करना चाहिये।

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